Saturday 30 January 2021

तुमसे तुमको मांग सकूँ मैं इतना हक़ दे दोगी क्या poetry by Shaan-E-Azam

तुमसे तुमको मांग सकूँ मैं
इतना हक़ दे दोगी क्या ?

बांट के अपने गम मुझसे
खुशियां मेरी ले लोगी क्या ?

जिस्मों से नहीं ये दिल से है 
ये सबको बताना पड़ता है 
मेरी भी मोहब्बत सच्ची थी
हर रोज़ जताना पड़ता है 

बिन बोले कुछ अल्फाज़ो को 
आँखों में मेरी पढ़ लोगी क्या ?
बिन बोले मेरे जज़्बातो को 
ख़ुद ब ख़ुद समझोगी क्या ?

जो ख़ुद को खाली कहते थे
मैंने उनको अपनाया है 
मेरे हिस्से के दो पल को 
सब ने मुझको तरसाया है 


बिन मांगे मेरे हिस्से का 
वक़्त मुझे दे दोगी क्या ?
तुमसे तुमको मांग सकूँ मैं
इतना हक़ दे दोगी क्या ?

कविता

कवि - शान ए आज़म देहेलवी 
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Sunday 24 January 2021

Bewafayi Shayari by Shaan-E-Azam Dehelvi


तेरा नाम लेकर ये लोग 
अब मुझको बुलाने लगे है 
मैं भूलना भी चाहूँ तो कैसे 
ये सब तेरी याद दिलाने लगे है 

मैं ये तो हरगिज़ नहीं चाहता की 
मेरी ज़ात से तुमको बदनामी मिले 
कमबख़्त मेरी हालत देखकर लोग 
अब तुमको बेवफ़ा बुलाने लगे है

Shaan-E-Azam Dehelvi

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Sunday 10 January 2021

Urdu poetry by Shane Azam


 बोहोत मुफ़लिसी है उसकी यादो के ख़ुमार में 

न किसी तेहवार की छुट्टी ,न ही खाली हूँ इतवार में 


नफ़े नुक़सान का अंदाज़ा किसको यहाँ कारोबार में 

मुफ़्त में नीलाम हो रहा हूँ  "शान" इश्क़ के बाजार में 






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