Sunday 10 January 2021

Urdu poetry by Shane Azam


 बोहोत मुफ़लिसी है उसकी यादो के ख़ुमार में 

न किसी तेहवार की छुट्टी ,न ही खाली हूँ इतवार में 


नफ़े नुक़सान का अंदाज़ा किसको यहाँ कारोबार में 

मुफ़्त में नीलाम हो रहा हूँ  "शान" इश्क़ के बाजार में 






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