छोड़ कर जाना ही फितरत है तुम्हारी
तो नज़दीक मेरे यूं आया न करो
बात अगर इश्क़ की करने बैठ गए हो
तो फिर मजबूरियां गिनवाया न करो
मोहब्बत के दस्तूरो से वाक़िफ हूं मैं
सलीक़ा ए इश्क़ मुझे सिखाया न करो
इश्क़ सच्चा है रुसवाई भी कुबूल है मुझे
ये बदनामी के नाम पर मुझे डराया न करो
Shayari by ShaanE Azam Dehelvi
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