Friday 12 February 2021

Shayari By Shaan E Azam Dehelvi

 छोड़ कर जाना ही फितरत है तुम्हारी

तो नज़दीक मेरे यूं  आया न करो

बात अगर इश्क़ की करने बैठ गए हो 
तो फिर मजबूरियां गिनवाया न करो

मोहब्बत के दस्तूरो से वाक़िफ हूं मैं
सलीक़ा ए इश्क़ मुझे सिखाया न करो

इश्क़ सच्चा है रुसवाई भी कुबूल है मुझे
ये बदनामी के नाम पर मुझे डराया न करो



Shayari by ShaanE Azam Dehelvi


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