ख़ुद बिखर कर उनको संवारा है हमने
जीती हुई बाज़ियो को भी हारा है हमने
वक़्त ग़वाह है तारीखों से पूछलो
फ़रिश्ते ख़ामोश है तो ख़ुदा से पूछलो
मेरी ज़िद्द के आगे टिक पाता
इतनी रक़ीब की औकात न थी
मैं झुका था अपनी मोहब्बत की ख़ातिर
मोहब्बत ग़वाह है ,मेरे महबूब से पूछलो
उसके क़ुबूल बोल देने से निकाह हो जाता है
तो मुझे उसने तुमसे पहले क़ुबूल कर लिया था
ये सेहरा उतार दो तुम्हारा निक़ाह जायज़ नहीं
यक़ीन नहीं है जाओ किसी क़ाज़ी से पूछलो
महज़ हासिल कर लेना ही मोहब्बत होती
तो रांझे ,मजनू को ज़माना याद न करता
मोहब्बत सच्ची हो तो दर्द लाज़मी है
इस बात का इल्म नहीं तो शायरो से पूछलो
ख़ुशक़िस्मत हो जो समझते नहीं कलाम मेरा
होना पड़ता है बर्बाद मायने जानने के लिए
थोड़ी क़ोशिश तो करो अल्फाज़ो को समझने की
समझ न आये तो किसी बर्बाद आशिक़ से पूछलो
By Shaan E Azam Dehelvi Ansari
#shaan_e_shayari
#shaaneazam
#imshaan
No comments:
Post a Comment