Saturday 6 August 2022

शायरी by शान

 इश्क़ करके तो ज़िद्दी भी

झुकना  सीख जायेगा

बदलता  प्यार सबको 

सब्र करना  सिखाएगा



बदलता वक़्त रिश्तों को 

आईना दिखाएगा 

बेहतर कौन है आख़िर 

यह बस पैसा बताएगा



क्या कुछ नहीं बिकता है

दुनिया के बाज़ारो में,

बस देखता जा सबसे

ऊँची बोली कौन लगाएगा



सबसे महंगा बिक रहा है

झूठ इस रंगीन ज़माने में

ये सच रंग नहीं बदलता

इसे कौन मुँह लगाएगा

-शान ए शायरी 


Friday 22 July 2022

दूर हो जाएगी ये हर एक परेशानी भी मुझसे ए शान ज़रा कोई अफ़वाह तो फैलाये मुझे इनसे मोहब्बत है


 दूर हो जाएगी ये हर एक परेशानी भी मुझसे 

ए शान 


ज़रा कोई अफ़वाह तो फैलाये मुझे इनसे मोहब्बत है 


Shayari by Shaan E Azam Ansari

Tuesday 8 June 2021

Gumãn na kar tū gairo par shayari by Shaan-e-azam

 ग़ुमान न कर तू गैरो पर 

मत सोच की "शान" अकेला है 


मेरे आंसू सच्चे साथी हैं 

दिन- रात ग़मों का मेला है 


 


Gumãn na kar tū gairo par 

Mat soch ki "shaan" akela hai ...


Mere añsū sachche sathi haiñ

Din-raat gamoñ ka mela hai...


Shaan-E-Shayari 


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Friday 12 February 2021

Shayari By Shaan E Azam Dehelvi

 छोड़ कर जाना ही फितरत है तुम्हारी

तो नज़दीक मेरे यूं  आया न करो

बात अगर इश्क़ की करने बैठ गए हो 
तो फिर मजबूरियां गिनवाया न करो

मोहब्बत के दस्तूरो से वाक़िफ हूं मैं
सलीक़ा ए इश्क़ मुझे सिखाया न करो

इश्क़ सच्चा है रुसवाई भी कुबूल है मुझे
ये बदनामी के नाम पर मुझे डराया न करो



Shayari by ShaanE Azam Dehelvi


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Saturday 30 January 2021

तुमसे तुमको मांग सकूँ मैं इतना हक़ दे दोगी क्या poetry by Shaan-E-Azam

तुमसे तुमको मांग सकूँ मैं
इतना हक़ दे दोगी क्या ?

बांट के अपने गम मुझसे
खुशियां मेरी ले लोगी क्या ?

जिस्मों से नहीं ये दिल से है 
ये सबको बताना पड़ता है 
मेरी भी मोहब्बत सच्ची थी
हर रोज़ जताना पड़ता है 

बिन बोले कुछ अल्फाज़ो को 
आँखों में मेरी पढ़ लोगी क्या ?
बिन बोले मेरे जज़्बातो को 
ख़ुद ब ख़ुद समझोगी क्या ?

जो ख़ुद को खाली कहते थे
मैंने उनको अपनाया है 
मेरे हिस्से के दो पल को 
सब ने मुझको तरसाया है 


बिन मांगे मेरे हिस्से का 
वक़्त मुझे दे दोगी क्या ?
तुमसे तुमको मांग सकूँ मैं
इतना हक़ दे दोगी क्या ?

कविता

कवि - शान ए आज़म देहेलवी 
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Sunday 24 January 2021

Bewafayi Shayari by Shaan-E-Azam Dehelvi


तेरा नाम लेकर ये लोग 
अब मुझको बुलाने लगे है 
मैं भूलना भी चाहूँ तो कैसे 
ये सब तेरी याद दिलाने लगे है 

मैं ये तो हरगिज़ नहीं चाहता की 
मेरी ज़ात से तुमको बदनामी मिले 
कमबख़्त मेरी हालत देखकर लोग 
अब तुमको बेवफ़ा बुलाने लगे है

Shaan-E-Azam Dehelvi

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Sunday 10 January 2021

Urdu poetry by Shane Azam


 बोहोत मुफ़लिसी है उसकी यादो के ख़ुमार में 

न किसी तेहवार की छुट्टी ,न ही खाली हूँ इतवार में 


नफ़े नुक़सान का अंदाज़ा किसको यहाँ कारोबार में 

मुफ़्त में नीलाम हो रहा हूँ  "शान" इश्क़ के बाजार में 






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